इलेक्ट्रॉल बॉंड्स पर रोक से सबसे ज्यादा किसे हुआ नुकसान, भाजपा या कांग्रेस किसे मिला ज्यादा चंदा
न्यूज 1 भारत/ नई दिल्ली
Electoral Bonds: चुनावी साल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड पर किए गए महत्वपूर्ण फैसले ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा का संकेत दिया है. इस फैसले से निकलेगा कि अब राजनीतिक पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा नहीं ले सकेंगी, जिससे चुनावी वित्त प्रणाली में बदलाव हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इस बड़े फैसले को सुनाया, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया गया है. इससे पहले, इलेक्टोरल बॉन्ड भारत में एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट के रूप में उपयोग होता था, जिसका मुख्य उद्देश्य चंदा संरचना को निर्दिष्ट करना और कालाधन को रोकना था.
2017 में भारत सरकार ने इसे पहली बार चुनावी चंदा लेने के लिए प्रयोग में लाया था. इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वाले व्यक्तियों की पहचान हो सके और इससे कालाधन के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके.
Supreme Court holds Electoral Bonds scheme is violative of Article 19(1)(a) and unconstitutional. Supreme Court strikes down Electoral Bonds scheme. Supreme Court says Electoral Bonds scheme has to be struck down as unconstitutional. https://t.co/T0X0RhXR1N pic.twitter.com/aMLKMM6p4M
— ANI (@ANI) February 15, 2024
चर्चा के दौरान प्रमुख तीन तर्क प्रकट हुए:
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इलेक्टोरल बॉन्ड रिश्वत, इससे सत्ताधारी दल को ज्यादा चंदा मिला:
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने याचिका दाखिल की थी और उनका कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड रिश्वत के रूप में उपयोग हो रहा है, जिससे सत्ताधारी दल को अधिक चंदा मिल रहा है. इसे साबित करने के लिए एडीआर ने कई साक्षात्कार और रिपोर्ट्स को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया.*
इससे प्रकट होता है कि चुनावी चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से बहुत बड़ी मात्रा में मिल रहा है और यह एक पार्टी को दूसरी से ज्यादा वित्तीय सामर्थ्य प्रदान कर सकता है.
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ईडी और सरकार जान सकती है, तो आम जनता क्यों नहीं?:
इस मुद्दे पर भी वकील प्रशांत भूषण ने यह तर्क दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में जानकारी रखने वाली ईडी और सरकार तो हैं, तो फिर आम जनता को क्यों नहीं पता होना चाहिए कि कौन-कौन से लोग इसका उपयोग कर रहे हैं और कितने चंदे मिल रहे हैं.*
इसका मुख्य तर्क यह था कि इससे राजनीतिक दलों को बिना सत्ता के बारे में जानकारी मिल रही है, जिससे वे अपनी राजनीतिक रणनीतियों को सार्थक बना सकते हैं.
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इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से बढ़ता कालाधन:
एक और मुद्दा यह था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से बढ़ता कालाधन है, क्योंकि इसमें चंदे देने वाले व्यक्तियों की पहचान नहीं होती और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है.*
इस विवाद के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया है और इससे बड़े पैम्फलेट में आम जनता को जानकारी देने के आदेश दिए हैं.
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मुद्दों पर चुनावी वित्त प्रणाली में सुधार के फैसले किए हैं, लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड पर यह पहला महत्वपूर्ण फैसला है, जिससे राजनीतिक पारिदृश्य में बदलाव हो सकता है.